Sunday, September 13, 2009

छोटी-छोटी गैयाँ छोटे-छोटे ग्वाल

छोटी-छोटी गैयाँ
छोटे-छोटे ग्वाल
छोटे से मोरे मदन गोपाल
कहाँ गईं गैयाँ, कहाँ गए ग्वालकहाँ गए मोरे मदन गोपाल ।हारे गईं गैयाँ, पहाड़ गए ग्वालखेलन गए मोरे मदन गोपाल
का खाऎँ गैयाँ ? का खाएँ ग्वालका खाएँ मोरे मदन गोपाल ?घास खाएँ गैयाँ, दूध पिएँ ग्वालमाखन खाएँ मोरे मदन गोपाल ।

सो जा बारे वीर , BUNDELKHANDI LOKGEET

सो जा बारे वीर,
वीर की बलैयाँ ले जा यमुना के तीर
ताती-ताती पुड़ी बनाई
ओई में डारो घी
पी ले मोरे बारे भइया
मोरो जुड़ाय जाए जी
सो जा बारे वीर
बीर की बलैयाँ ले जा जमुना के तीर
एक कटोरा दूध जमाओ
और बनाई खीर
ले ले मोरे बारे भइया
मोरो जुड़ाय जाए जी
सो जा बारे बीर
बीर की बलैयाँ ले जा जमुना के तीर
बरा पे डारो पालना
पीपर पर डारी डोर
सो जा मोरे बारे भइया
मैं लाऊँ गगरिया बोर
सो जा बारे वीर,
वीर की बलैयाँ ले जा यमुना के तीर

नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए / मासूम

नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए बाकी जो बचा था काले चोर ले गए
खाके पीके मोटे होके चोर बैठे रेल मेंचोरों वाला डिब्बा कट कर पहुँचा सीधे जेल में नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए ...
उन चोरों की खूब ख़बर ली मोटे थानेदार ने मोरों को भी खूब नचाया जंगल की सरकार ने नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए ...
अच्छी नानी प्यारी नानी , रूठा रूठी छोड़ दे जल्दी से एक पैसा दे दे तू कंजूसी छोड़ देनानी तेरी मोरनी को मोर ले गए

लकड़ी की कांठी / मासूम (GULZAR)

लकडी की काठी काठी पे घोड़ा घोडे की दुम पे जो मारा हथौडा दौड़ा दौड़ा दौड़ा
घोड़ा दुम उठा के दौड़ा घोड़ा पहुँचा चौक में, चौक में था नाइ घोड़ेजी की नाइ ने हजामत जो
बनाई चग-बग चग-बग चग-बग चग-बगघोड़ा पहुँचा चौक में,
चौक में था नाइ घोड़ेजी की नाइ ने हजामत जो
बनाई दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा घोड़ा था
घमंडी पहुँचा सब्जी मण्डी सब्जी मण्डी बरफ पड़ी थी
बरफ में लग गई ठंडी चग-बग चग-बग चग-बग चग-बगघोड़ा
था घमंडी पहुँचा सब्जी मण्डी सब्जी मण्डी बरफ पड़ी थी
बरफ में लग गई ठंडी दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा
घोड़ा अपना तगडा है देखो कितनी चरबी है चलता है महरौली में पर घोड़ा अपना अरबी है
चग-बग चग-बग चग-बग चग-बगघोड़ा अपना तगडा है
देखो कितनी चरबी हैचलता है महरौली में पर घोड़ा अपना अरबी
है बांह छुडा के दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा
लकडी की काठी काठी पे घोड़ा घोडे की दुम पे जो मारा हथौडा दौड़ा दौड़ा
दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा

रुक जा रात ठहर जा रे चंदा / दिल एक मंदिर (गीतकार : शैलेन्द्र सिंह )

रुक जा रात ठहर जा रे चंदा
बीते न मिलन की बेला
आज चांदनी की नगरी में अरमानों का मेला रुक जा रात ...
पहले मिलन की यादें लेकर आई है ये रात सुहानी
दोहराते हैं चांद सितारे मेरी तुम्हारी प्रेम कहानी
मेरी तुम्हारी प्रेम कहानी
रुक जा रात ...
कल का डरना काल की चिंता, दो तन है मन एक हमारे
जीवन सीमा के आगे भी आऊंगी मैं संग तुम्हारे
आऊंगी मैं संग तुम्हारे
रुक जा रात ...
रुक जा रात ठहर जा रे चंदा
बीते न मिलन की बेला
आज चांदनी की नगरी में अरमानों का मेला
रुक जा रात ...

रहें ना रहें हम (गीतकार : मज़रूह सुल्तानपुरी)

रहें ना रहें हम, महका करेंगे बन के कली,
बन के सबा, बाग़े वफा में ...
मौसम कोई हो इस चमन में रंग बनके रहेंगे हम खिरामा ,
चाहत की खुशबू, यूँ ही ज़ुल्फ़ों से उड़ेगी, खिजां हो या बहारां
यूँ ही झूमते, युहीँ झूमते और खिलते रहेंगे,
बन के कली बन के सबा बाग़ें वफ़ा मेंरहें ना रहें हम ...
खोये हम ऐसे क्या है मिलना क्या बिछड़ना नहीं है, याद हमको
कूचे में दिल के जब से आये सिर्फ़ दिल की ज़मीं है याद हमको,
इसी सरज़मीं, इसी सरज़मीं पे हम तो रहेंगे,
बन के कली बन के सबा बाग़े वफ़ा में ...रहें ना रहें हम ...
जब हम न होंगे तब हमारी खाक पे तुम रुकोगे चलते चलते ,
अश्कों से भीगी चांदनी में इक सदा सी सुनोगे चलते चलते ,
वहीं पे कहीं, वहीं पे कहीं हम तुमसे मिलेंगे,
बन के कली बन के सबा बाग़े वफ़ा में ...
रहें ना रहें हम, महका करेंगे ...

MERE DESH KI DHARTI (UPKAR)

मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोतीमेरे देश की
धरतीबैलों के गले में जब घुँघरू जीवन का राग सुनाते
हैंग़म कोस दूर हो जाता है खुशियों के कंवल मुसकाते
हैंसुन के रहट की आवाज़ें यों लगे कहीं शहनाई
बजेआते ही मस्त बहारों के दुल्हन की तरह हर खेत
सजेमेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे
मोतीमेरे देश की धरतीजब
चलते हैं इस धरती पे हल ममता अँगड़ाइयाँ लेती
हैक्यों ना पूजे इस माटी को जो जीवन का सुख देती
हैइस धरती पे जिसने जनम लिया उसने ही पाया प्यार
तेरायहाँ अपना पराया कोई नही हैं सब पे माँ उपकार
तेरामेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोतीमेरे
देश की धरतीये बाग़ हैं गौतम नानक का खिलते हैं
अमन के फूल यहाँगांधी, सुभाष, टैगोर, तिलक ऐसे हैं
चमन के फूल यहाँरंग हरा हरिसिंह नलवे से रंग लाल
है लाल बहादुर सेरंग बना बसंती भगतसिंह
रंग अमन का वीर जवाहर सेमेरे देश की धरती
सोना उगले उगले हीरे मोतीमेरे देश की धरती

ये जो देस हैं तेरा (ye jo desh hai tera) by. A.R RAHMAN

ये जो देस हैं तेरा, स्वदेस हैं तेरा, तुझे हैं पुकारा
ये वो बंधन हैं, जो कभी टूट नही सकता

मिट्टी की हैं जो खुशबू, तू कैसे भूलाएगा
तू चाहे कही जाए, तू लौट के आएगा
नई नई राहोंमें, दबी दबी आहोंमें
खोए खोए दिल से तेरे, कोई ये कहेगा
ये जो देस हैं तेरा, स्वदेस हैं तेरा,तुझे हैं पुकारा

तुझ से जिंदगी हैं ये कह रही
सब तो पा लिया, अब हैं क्या कमीं
यूँ तो सारे सुख हैं बरसे, पर दूर तू हैं अपने घर से
आ लौट चल तू अब दीवाने
जहा कोई तो तुझे अपना माने
आवाज दे तुझे बुलाने वो ही देस

ये पल हैं वो ही जिस में हैं छूपी, पूरी एक सदी, सारी जिंदगी
तू ना पूछ रास्तें में, काहे आए हैं इस तरह दोराहे
तू ही तो हैं राह जो सुझाए
तू ही तो हैं अब जो ये बताए
जाए तो किस दिशा में जाए वो ही देस