Thursday, December 10, 2009

FAMOUS QUOTES
















MOTIVATIONAL QUOTES
















Sunday, September 13, 2009

छोटी-छोटी गैयाँ छोटे-छोटे ग्वाल

छोटी-छोटी गैयाँ
छोटे-छोटे ग्वाल
छोटे से मोरे मदन गोपाल
कहाँ गईं गैयाँ, कहाँ गए ग्वालकहाँ गए मोरे मदन गोपाल ।हारे गईं गैयाँ, पहाड़ गए ग्वालखेलन गए मोरे मदन गोपाल
का खाऎँ गैयाँ ? का खाएँ ग्वालका खाएँ मोरे मदन गोपाल ?घास खाएँ गैयाँ, दूध पिएँ ग्वालमाखन खाएँ मोरे मदन गोपाल ।

सो जा बारे वीर , BUNDELKHANDI LOKGEET

सो जा बारे वीर,
वीर की बलैयाँ ले जा यमुना के तीर
ताती-ताती पुड़ी बनाई
ओई में डारो घी
पी ले मोरे बारे भइया
मोरो जुड़ाय जाए जी
सो जा बारे वीर
बीर की बलैयाँ ले जा जमुना के तीर
एक कटोरा दूध जमाओ
और बनाई खीर
ले ले मोरे बारे भइया
मोरो जुड़ाय जाए जी
सो जा बारे बीर
बीर की बलैयाँ ले जा जमुना के तीर
बरा पे डारो पालना
पीपर पर डारी डोर
सो जा मोरे बारे भइया
मैं लाऊँ गगरिया बोर
सो जा बारे वीर,
वीर की बलैयाँ ले जा यमुना के तीर

नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए / मासूम

नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए बाकी जो बचा था काले चोर ले गए
खाके पीके मोटे होके चोर बैठे रेल मेंचोरों वाला डिब्बा कट कर पहुँचा सीधे जेल में नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए ...
उन चोरों की खूब ख़बर ली मोटे थानेदार ने मोरों को भी खूब नचाया जंगल की सरकार ने नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए ...
अच्छी नानी प्यारी नानी , रूठा रूठी छोड़ दे जल्दी से एक पैसा दे दे तू कंजूसी छोड़ देनानी तेरी मोरनी को मोर ले गए

लकड़ी की कांठी / मासूम (GULZAR)

लकडी की काठी काठी पे घोड़ा घोडे की दुम पे जो मारा हथौडा दौड़ा दौड़ा दौड़ा
घोड़ा दुम उठा के दौड़ा घोड़ा पहुँचा चौक में, चौक में था नाइ घोड़ेजी की नाइ ने हजामत जो
बनाई चग-बग चग-बग चग-बग चग-बगघोड़ा पहुँचा चौक में,
चौक में था नाइ घोड़ेजी की नाइ ने हजामत जो
बनाई दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा घोड़ा था
घमंडी पहुँचा सब्जी मण्डी सब्जी मण्डी बरफ पड़ी थी
बरफ में लग गई ठंडी चग-बग चग-बग चग-बग चग-बगघोड़ा
था घमंडी पहुँचा सब्जी मण्डी सब्जी मण्डी बरफ पड़ी थी
बरफ में लग गई ठंडी दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा
घोड़ा अपना तगडा है देखो कितनी चरबी है चलता है महरौली में पर घोड़ा अपना अरबी है
चग-बग चग-बग चग-बग चग-बगघोड़ा अपना तगडा है
देखो कितनी चरबी हैचलता है महरौली में पर घोड़ा अपना अरबी
है बांह छुडा के दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा
लकडी की काठी काठी पे घोड़ा घोडे की दुम पे जो मारा हथौडा दौड़ा दौड़ा
दौड़ा घोड़ा दुम उठा के दौड़ा

रुक जा रात ठहर जा रे चंदा / दिल एक मंदिर (गीतकार : शैलेन्द्र सिंह )

रुक जा रात ठहर जा रे चंदा
बीते न मिलन की बेला
आज चांदनी की नगरी में अरमानों का मेला रुक जा रात ...
पहले मिलन की यादें लेकर आई है ये रात सुहानी
दोहराते हैं चांद सितारे मेरी तुम्हारी प्रेम कहानी
मेरी तुम्हारी प्रेम कहानी
रुक जा रात ...
कल का डरना काल की चिंता, दो तन है मन एक हमारे
जीवन सीमा के आगे भी आऊंगी मैं संग तुम्हारे
आऊंगी मैं संग तुम्हारे
रुक जा रात ...
रुक जा रात ठहर जा रे चंदा
बीते न मिलन की बेला
आज चांदनी की नगरी में अरमानों का मेला
रुक जा रात ...

रहें ना रहें हम (गीतकार : मज़रूह सुल्तानपुरी)

रहें ना रहें हम, महका करेंगे बन के कली,
बन के सबा, बाग़े वफा में ...
मौसम कोई हो इस चमन में रंग बनके रहेंगे हम खिरामा ,
चाहत की खुशबू, यूँ ही ज़ुल्फ़ों से उड़ेगी, खिजां हो या बहारां
यूँ ही झूमते, युहीँ झूमते और खिलते रहेंगे,
बन के कली बन के सबा बाग़ें वफ़ा मेंरहें ना रहें हम ...
खोये हम ऐसे क्या है मिलना क्या बिछड़ना नहीं है, याद हमको
कूचे में दिल के जब से आये सिर्फ़ दिल की ज़मीं है याद हमको,
इसी सरज़मीं, इसी सरज़मीं पे हम तो रहेंगे,
बन के कली बन के सबा बाग़े वफ़ा में ...रहें ना रहें हम ...
जब हम न होंगे तब हमारी खाक पे तुम रुकोगे चलते चलते ,
अश्कों से भीगी चांदनी में इक सदा सी सुनोगे चलते चलते ,
वहीं पे कहीं, वहीं पे कहीं हम तुमसे मिलेंगे,
बन के कली बन के सबा बाग़े वफ़ा में ...
रहें ना रहें हम, महका करेंगे ...

MERE DESH KI DHARTI (UPKAR)

मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोतीमेरे देश की
धरतीबैलों के गले में जब घुँघरू जीवन का राग सुनाते
हैंग़म कोस दूर हो जाता है खुशियों के कंवल मुसकाते
हैंसुन के रहट की आवाज़ें यों लगे कहीं शहनाई
बजेआते ही मस्त बहारों के दुल्हन की तरह हर खेत
सजेमेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे
मोतीमेरे देश की धरतीजब
चलते हैं इस धरती पे हल ममता अँगड़ाइयाँ लेती
हैक्यों ना पूजे इस माटी को जो जीवन का सुख देती
हैइस धरती पे जिसने जनम लिया उसने ही पाया प्यार
तेरायहाँ अपना पराया कोई नही हैं सब पे माँ उपकार
तेरामेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोतीमेरे
देश की धरतीये बाग़ हैं गौतम नानक का खिलते हैं
अमन के फूल यहाँगांधी, सुभाष, टैगोर, तिलक ऐसे हैं
चमन के फूल यहाँरंग हरा हरिसिंह नलवे से रंग लाल
है लाल बहादुर सेरंग बना बसंती भगतसिंह
रंग अमन का वीर जवाहर सेमेरे देश की धरती
सोना उगले उगले हीरे मोतीमेरे देश की धरती

ये जो देस हैं तेरा (ye jo desh hai tera) by. A.R RAHMAN

ये जो देस हैं तेरा, स्वदेस हैं तेरा, तुझे हैं पुकारा
ये वो बंधन हैं, जो कभी टूट नही सकता

मिट्टी की हैं जो खुशबू, तू कैसे भूलाएगा
तू चाहे कही जाए, तू लौट के आएगा
नई नई राहोंमें, दबी दबी आहोंमें
खोए खोए दिल से तेरे, कोई ये कहेगा
ये जो देस हैं तेरा, स्वदेस हैं तेरा,तुझे हैं पुकारा

तुझ से जिंदगी हैं ये कह रही
सब तो पा लिया, अब हैं क्या कमीं
यूँ तो सारे सुख हैं बरसे, पर दूर तू हैं अपने घर से
आ लौट चल तू अब दीवाने
जहा कोई तो तुझे अपना माने
आवाज दे तुझे बुलाने वो ही देस

ये पल हैं वो ही जिस में हैं छूपी, पूरी एक सदी, सारी जिंदगी
तू ना पूछ रास्तें में, काहे आए हैं इस तरह दोराहे
तू ही तो हैं राह जो सुझाए
तू ही तो हैं अब जो ये बताए
जाए तो किस दिशा में जाए वो ही देस

Wednesday, September 9, 2009

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हरिवंशराय बच्चन

सोचा करता बैठ अकेले,
गत जीवन के सुख-दुख झेले,
दंशनकारी सुधियों से मैं उर के छाले सहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!



नहीं खोजने जाता मरहम,
होकर अपने प्रति अति निर्मम,
उर के घावों को आँसू के खारे जल से नहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!



आह निकल मुख से जाती है,
मानव की ही तो छाती है,
लाज नहीं मुझको देवों में यदि मैं दुर्बल कहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!

रचनाकार: हरिवंशराय बच्चन (HARIVANSH RAI BACHCHAN)

[b]प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो ।


मैं जगत के ताप से डरता नहीं अब,
मैं समय के शाप से डरता नहीं अब,
आज कुंतल छाँह मुझपर तुम किए हो
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो ।



रात मेरी, रात का श्रृंगार मेरा,
आज आधे विश्व से अभिसार मेरा,
तुम मुझे अधिकार अधरों पर दिए हो
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो।



वह सुरा के रूप से मोहे भला क्या,
वह सुधा के स्वाद से जा‌ए छला क्या,
जो तुम्हारे होंठ का मधु-विष पिए हो
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो।



मृत-सजीवन था तुम्हारा तो परस ही,
पा गया मैं बाहु का बंधन सरस भी,
मैं अमर अब, मत कहो केवल जिए हो
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो।

Sunday, August 30, 2009

रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥12॥



बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय॥13॥



माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि।
फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि॥14॥



एकहि साधै सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहि सींचबो, फूलहि फलहि अघाय॥15॥



रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि।
उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि॥16॥



रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥17॥



बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥18॥



रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।
सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय॥19॥



रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥20॥

रचनाकार: रहीम (RAHEEM)

छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥1॥



तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥2॥



दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे होय॥3॥



खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥4॥



जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय।
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥5॥



बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय॥6॥



आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि॥7॥



खीरा सिर ते काटिये, मलियत नमक लगाय।
रहिमन करुये मुखन को, चहियत इहै सजाय॥8॥

रचनाकार: तुलसीदास (TULASIDAS)

तुलसी अपने राम को, भजन करौ निरसंक

आदि अन्त निरबाहिवो जैसे नौ को अंक ।।


आवत ही हर्षे नही नैनन नही सनेह!

तुलसी तहां न जाइए कंचन बरसे मेह!!


तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहु ओर!

बसीकरण एक मंत्र है परिहरु बचन कठोर!!


बिना तेज के पुरूष अवशी अवज्ञा होय!

आगि बुझे ज्यों रख की आप छुवे सब कोय!!


तुलसी साथी विपत्ति के विद्या, विनय, विवेक!

साहस सुकृति सुसत्याव्रत राम भरोसे एक!!

Tuesday, August 25, 2009

रचनाकार: जावेद अख़्तर

तुमको देखा तो ये ख़याल आया
ज़िन्दगी धूप तुम घना साया



आज फिर दिल ने एक तमन्ना की
आज फिर दिल को हमने समझाया



तुम चले जाओगे तो सोचेंगे
हमने क्या खोया, हमने क्या पाया



हम जिसे गुनगुना नहीं सकते
वक़्त ने ऐसा गीत क्यूँ गाया

रचनाकार: जावेद अख़्तर

तमन्‍ना फिर मचल जाए

अगर तुम मिलने आ जाओ।

यह मौसम ही बदल जाए

अगर तुम मिलने आ जाओ।

मुझे गम है कि मैने जिन्‍दगी में कुछ नहीं पाया

ये गम दिल से निकल जाए

अगर तुम मिलने आ जाओ।

नहीं मिलते हो मुझसे तुम तो सब हमदर्द हैं मेरे

ज़माना मुझसे जल जाए

अगर तुम मिलने आ जाओ।

ये दुनिया भर के झगड़े घर के किस्‍से काम की बातें

बला हर एक टल जाए

अगर तुम मिलने आ जाओ।

रचनाकार: जावेद अख़्तर (JAVED AKHTAR)

प्यार मुझसे जो किया तुमने तो क्या पाओगी
मेरे हालत की आंधी में बिखर जओगी



रंज और दर्द की बस्ती का मैं बाशिन्दा हूँ
ये तो बस मैं हूँ के इस हाल में भी ज़िन्दा हूँ
ख्वाब क्यूँ देखूँ वो कल जिसपे मैं शर्मिन्दा हूँ
मैं जो शर्मिन्दा हुआ तुम भी तो शरमाओगी



क्यूं मेरे साथ कोइ और परेशान रहे
मेरी दुनिया है जो वीरान तो वीरान रहे
ज़िन्दगी का ये सफ़र तुमको तो आसान रहे
हमसफ़र मुझको बनओगी तो पछताओगी



एक मैं क्या अभी आयेंगे दीवाने कितने
अभी गूंजेगे मुहब्बत के तराने कितने
ज़िन्दगी तुमको सुनायेगी फ़साने कितने
क्यूं समझती हो मुझे भूल नही पाओगी

रचनाकार: गुलज़ार (GULZAR)

जब भी यह दिल उदास होता है
जाने कौन आस-पास होता है



होंठ चुपचाप बोलते हों जब
सांस कुछ तेज़-तेज़ चलती हो
आंखें जब दे रही हों आवाज़ें
ठंडी आहों में सांस जलती हो



आँख में तैरती हैं तसवीरें
तेरा चेहरा तेरा ख़याल लिए
आईना देखता है जब मुझको
एक मासूम सा सवाल लिए



कोई वादा नहीं किया लेकिन
क्यों तेरा इंतजार रहता है
बेवजह जब क़रार मिल जाए
दिल बड़ा बेकरार रहता है



जब भी यह दिल उदास होता है
जाने कौन आस-पास होता है

रचनाकार: गुलज़ार (GULZAR)

दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई



आईना देख के तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई



पक गया है शज़र पे फल शायद
फिर से पत्थर उछलता है कोई



फिर नज़र में लहू के छींटे हैं
तुम को शायद मुघालता है कोई



देर से गूँजतें हैं सन्नाटे
जैसे हम को पुकारता है कोई

AMAZING